छत्तीसगढ़ कैबिनेट विस्तार विवाद: हरियाणा मॉडल VS संवैधानिक प्रावधान

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छत्तीसगढ़ कैबिनेट विस्तार विवाद: हरियाणा मॉडल बनाम संवैधानिक प्रावधान

एक साधारण गणित का सवाल अब बड़े संवैधानिक और राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साई के नेतृत्व में हालिया मंत्रिमंडल विस्तार—जिसमें कैबिनेट की संख्या 13 से बढ़ाकर 14 कर दी गई—ने विपक्ष और कानूनी दुनिया दोनों में बहस छेड़ दी है।

विस्तार का राजनीतिक संदर्भ — नए मंत्रियों और रणनीति

भाजपा सरकार ने तीन नए चेहरों को मंत्री पद पर बिठाया: राजेश अग्रवाल, गुरु खुश्कन्त साहेब और गजेन्द्र यादव। ये ऐसे नाम हैं जिन्हें पहली बार कैबिनेट में शामिल किया गया है। राजनीतिक रूप से यह कदम जातीय व क्षेत्रीय संतुलन साधने और संगठन में नई पकड़ बनाने की रणनीति माना जा रहा है।

विवाद की जड़: अनुच्छेद 164(1A) और 15% की सीमा

मुद्दे की जड़ भारतीय संविधान का वह प्रावधान है जो किसी राज्य के मंत्रिमंडल की अधिकतम संख्या निर्धारित करता है। 91वें संशोधन के बाद यह तय है कि विधानसभासदों की कुल संख्या का अधिकतम 15% ही मंत्री बन सकते हैं। छत्तीसगढ़ में 90 सदस्यीय विधानसभा के सन्दर्भ में यह 13.5 आता है—यानी व्यावहारिक रूप से अधिकतम 13 मंत्री। फिलहाल कैबिनेट में 14 सदस्य होने के कारण यह संवैधानिक प्रश्न उठ रहा है।

बीजेपी का बचाव: हरियाणा मॉडल और वैधता का दावा

सरकार ने अपना बचाव करते हुए हरियाणा के उदाहरण का हवाला दिया, जहाँ विधानसभा भी 90 सदस्यीय होने के बावजूद 14 मंत्री हैं। भाजपा का तर्क है कि केंद्र से स्पष्ट अनुमति के बाद यह विस्तार किया गया और इसलिए यह वैध है। इस दावे की जांच अब न्यायिक प्रक्रिया में होगी।

कांग्रेस का हमला: अवैधानिकता व पक्षपात के आरोप

कांग्रेस ने विस्तार को अवैधानिक बताया है। वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि पार्टी की पारंपरिक और अनुभवी काडर को नजरअंदाज कर नई नियुक्तियों को प्राथमिकता दी गई। प्रतिरोधी दल का कहना है कि संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर राजनीतिक फायदे के लिए यह कदम उठाया गया।

राजनीतिक असर: यह कदम यदि बरकरार रहा तो भाजपा की नई राजनीतिक बिसात मजबूत होगी; पर अंदरूनी तौर पर वरिष्ठ नेताओं में खीज बढ़ सकती है।

न्यायालय की भूमिका: जनहित याचिका और सुनवाई

एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका ने मामले को कानूनी रूप दे दिया है। याचिका में मांग की गई है कि मंत्रिमंडल की संख्या को संविधान के अनुरूप 13 पर सीमित किया जाए। अदालत ने दोनों पक्षों से दस्तावेज और शपथपत्र माँगे हैं; अगली सुनवाई आगामी तिथि पर निर्धारित है।

संभावित संवैधानिक और राष्ट्रीय प्रभाव

इस विवाद के नतीजे सिर्फ़ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं रहेंगे। यदि अदालत 14 मंत्रियों को वैध ठहराती है तो यह अन्य राज्यों के लिये प्रासंगिक उदाहरण बन सकता है; वहीं असंवैधानिक घोषित होने पर कई राज्यों में मंत्रिमंडलों के आकार पर पुनर्विचार होना आवश्यक हो जाएगा।

निष्कर्ष: कानून बनाम राजनीति

छत्तीसगढ़ का यह मामला यह दिखाता है कि कैसे राजनीति और संवैधानिक गणित आमने-सामने आ जाते हैं। भाजपा का हरियाणा मॉडल पर आधारित बचाव और कांग्रेस का संविधानिक उल्लंघन का आरोप—दोनों का निर्णायक मुक़ाबला अब अदालत में है। 2 सितंबर की सुनवाई के परिणाम से साफ़ होगा कि यह 14 सदस्यीय प्रयोग जारी रहेगा या संवैधानिक मर्यादा के कारण वापस लेना पड़ेगा।

लेखक टिप्पणी: यह विश्लेषण सार्वजनिक उपलब्ध तथ्यों और राजनीतिक घटनाक्रम के आधार पर तैयार किया गया है। अदालत की अंतिम टिप्पणी ही कानूनी स्थिति को स्पष्ट करेगी।
छत्तीसगढ़ कैबिनेट विस्तार विवाद केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति का चेहरा भी बदल सकता है। अगर अदालत भाजपा सरकार के पक्ष में फैसला देती है तो इसे पार्टी की बड़ी जीत माना जाएगा और इसका असर विधानसभा व लोकसभा चुनाव दोनों में देखने को मिल सकता है। वहीं यदि निर्णय कांग्रेस के पक्ष में जाता है, तो भाजपा की विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं और विपक्ष को मजबूत हथियार मिल जाएगा। इसलिए यह मामला सिर्फ़ मंत्रियों की संख्या नहीं, बल्कि सत्ता संतुलन की कहानी भी है।

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