अपडेटेड — 2025 · विषय: UPSC सुधार, सिविल सेवा
UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव: सवाल, सबूत और समाधान
क्या वास्तव में UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव होता है? यह प्रश्न बार-बार उठता रहा है—खासकर तब जब लिखित परीक्षा में उच्च अंक पाने वाले कुछ उम्मीदवार अंतिम रैंकिंग में पिछड़ जाते हैं। इस लेख में हम विस्तार से बताएँगे कि UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव के क्या आरोप हैं, उपलब्ध आंकड़े क्या दिखाते हैं और किन व्यावहारिक सुधारों से पारदर्शिता बढ़ाई जा सकती है।
1. संदर्भ: प्रक्रिया और चिंता का कारण
सिविल सेवा चयन में लिखित परीक्षा (1,750 अंक) और साक्षात्कार (275 अंक) दोनों का योगदान होता है। कई उम्मीदवार और विश्लेषक मानते हैं कि यही साक्षात्कार का सब्जेक्टिव स्वरूप सही मायने में UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव जैसा असर पैदा कर देता है—यानी समान लिखित स्कोर होने पर कुछ समूहों को कम इंटरव्यू अंक मिलते हैं।
2. महत्वपूर्ण उदाहरण और आंकड़े
पुराने मामलों और परिणामों के विश्लेषणों में एक पैटर्न दिखा है जहाँ समान लिखित अंक वाले सामान्य वर्ग (General) के उम्मीदवारों को SC/ST उम्मीदवारों की तुलना में उच्च औसत इंटरव्यू अंक प्राप्त होते दिखे। इसी तरह कई रिपोर्टों ने यह तर्क दिया कि UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव के कारण कुछ प्रतिभाएँ पिछड़ जाती हैं।
| वर्ष | सामान्य (औसत इंटरव्यू अंक) | SC/ST (औसत इंटरव्यू अंक) |
|---|---|---|
| 2015 | 156 | 124 |
| 2018 | 162 | 128 |
| 2021 | 158 | 126 |
| 2024 | 160 | 129 |
3. कारण — क्यों ऐसा प्रतीत होता है?
- व्यक्तिपरक मूल्यांकन: इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों की व्यक्तिगत धारणा अंकों को प्रभावित कर सकती है।
- भाषा और अभिव्यक्ति: धाराप्रवाह भाषाई कौशल का प्रभाव होता है, जो सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से जुड़ा हो सकता है।
- बोर्ड विविधता की कमी: यदि बोर्ड समावेशी नहीं है तो unconscious bias बढ़ता है।
4. समाधान — पारदर्शिता बढ़ाने के व्यावहारिक कदम
नीचे दिये उपाय UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव के आरोपों को मिटाने में मददगार हो सकते हैं:
- 1) वीडियो रिकॉर्डिंग: UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव के आरोप टालने हेतु इंटरव्यू सत्रों की रिकॉर्डिंग और स्वतंत्र समीक्षा उपलब्ध करानी चाहिए।
- 2) मानकीकृत अंकदाश: अंक देने के स्पष्ट मापदंड प्रकाशित हों ताकि पैतृकता और व्यक्तिपरकता घटे।
- 3) बोर्ड में विविधता: महिला, अल्पसंख्यक और विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि के सदस्यों को शामिल कर बोर्ड का संतुलन बनायें।
- 4) शिकायत निवारण: फास्ट-ट्रैक अपील और पारदर्शी फीडबैक तंत्र लागू करें।
5. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: अन्य देशों से सीख
UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव के आरोप केवल भारत तक सीमित नहीं हैं। दुनिया के कई देशों में भी सिविल सेवा चयन के दौरान निष्पक्षता पर सवाल उठते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका और ब्रिटेन की सिविल सेवा परीक्षाओं में भी बार-बार यह चर्चा होती रही है कि किस तरह से सामाजिक पृष्ठभूमि और भाषा उम्मीदवार की सफलता में भूमिका निभाती है।
ब्रिटेन में Civil Service Commission ने इस समस्या से निपटने के लिए इंटरव्यू के दौरान ब्लाइंड रिक्रूटमेंट लागू किया, यानी उम्मीदवार की जाति, लिंग और सामाजिक पहचान बोर्ड को पहले से पता नहीं होती। इसी तरह अमेरिका में कई राज्यों ने इंटरव्यू अंकों के लिए स्टैंडर्डाइज्ड रूब्रिक तैयार किए ताकि किसी भी तरह का भेदभाव कम से कम हो सके।
6. आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों पर प्रभाव
UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव के आरोप सीधे तौर पर आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को प्रभावित करते हैं। कई प्रतिभाशाली युवा जो लिखित परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं, वे केवल इंटरव्यू में कम अंक मिलने के कारण पीछे रह जाते हैं। इससे न केवल व्यक्तिगत स्तर पर निराशा होती है, बल्कि समाज की विविधता और प्रशासनिक संतुलन पर भी असर पड़ता है।
यहां यह समझना जरूरी है कि आरक्षण केवल अवसर की समानता सुनिश्चित करता है, लेकिन यदि इंटरव्यू जैसे सब्जेक्टिव घटक पारदर्शी नहीं होंगे, तो आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को वास्तविक लाभ नहीं मिल पाएगा।
7. UPSC और पारदर्शिता की दिशा में कदम
हाल के वर्षों में UPSC ने कई सुधार किए हैं। अब उम्मीदवारों को उनके इंटरव्यू अंक ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध करा दिए जाते हैं। साथ ही, लिखित और इंटरव्यू के कटऑफ अंक भी सार्वजनिक किए जाते हैं। हालांकि, पारदर्शिता बढ़ाने के ये कदम पर्याप्त नहीं माने जाते।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव जैसे आरोपों को दूर करने के लिए आयोग को अधिक सशक्त कदम उठाने चाहिए—जैसे कि इंटरव्यू की रिकॉर्डिंग को स्वतंत्र निगरानी एजेंसी को सौंपना, बोर्ड सदस्यों के लिए संवेदनशीलता प्रशिक्षण (sensitivity training) कराना, और उम्मीदवारों को फीडबैक रिपोर्ट उपलब्ध कराना।
8. समाज और युवाओं की भूमिका
सिर्फ UPSC ही नहीं, बल्कि समाज और उम्मीदवारों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। यदि किसी उम्मीदवार को लगता है कि उसे इंटरव्यू में अनुचित रूप से कम अंक दिए गए हैं, तो उसे RTI के माध्यम से जानकारी मांगनी चाहिए और सोशल प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता की मांग उठानी चाहिए। मीडिया और शैक्षिक संस्थानों को भी इस बहस को निष्पक्ष चयन के संदर्भ में आगे बढ़ाना चाहिए।
आखिरकार, UPSC इंटरव्यू में जातीय भेदभाव केवल उम्मीदवारों का नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक तंत्र का प्रश्न है। यदि चयन प्रक्रिया पर भरोसा मजबूत होगा, तो प्रशासनिक ढांचा भी ज्यादा न्यायसंगत और प्रभावी बनेगा।
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